आज के समय सासंद बनने के लिये नेताओं के द्वारा तरह तरह नुक्शा अपनाया जाता है।
कोशी बिहार टुडे, सहरसा
बात करते है बिहार के एक ऐसे सासंद का जिन्होंने इस कारण से लोकसभा का टिकट ठुकरा दिया कि लोगो का गलत पैरवी नही करना पड़े। बात खगड़िया लोकसभा की हो रही है। बात 1977 लोकसभा चुनाव की है। इमरजेंसी के बाद देशभर में जेपी की लहर थी। 1971 में खगड़िया से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी की टिकट पर चुनाव जीतने वाले शिवशंकर यादव को खगड़िया से मैदान संभालने का आदेश मिला। जनता पार्टी के टिकट पर जीत तय थी, बावजूद यादव ने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया। उनका कहना था- न मैं टिकट लूंगा और न ही चुनाव लडूंगा। ऐसा सांसद होने का क्या मतलब, जब वोटर गलत कामों की पैरवी कराने आने लगें? मैं ऐसे कामों की पैरवी से इनकार करते-करते तंग आ चुका हूं। मेरी अंतरात्मा मुझे और आगे तंग होते रहने की इजाजत नहीं देती। शिवशंकर यादव इतने ईमानदार थे कि निधन हुआ तो उनके पास से मात्र सात रुपए निकले थे। ऐसे सासंद की कहानी सुनते है तो लोग सलाम करते है।
Jay hind sir
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