रविवार, 5 मई 2019

रमजान में गलत संगत से दूर रहे, मिलता है अल्लाह का रहमत

मंगलवार से शुरू होगा रोजा, एक महीने तक चलेगा
कोशी बिहार टुडे, सहरसा

रमजान के महीने को इबादत का महीना कहा जाता है। इस दौरान बंदगी करने वाले हर शख्स की ख्वाहिश अल्लाह पूरी करता है।रमजान का अर्थ है जलना यानी रोजा रख ने से सारे गुनाह जल जाता है। इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक नवां महीना रमजान का होता है। इसमें सभी मुस्लिम समुदाय के लोग एक महीना रोजा रखते हैं।
मुस्लिम समुदाय में रमजान को इसलिए भी खास माना जाता है, क्योंकि इसी दौरान इस्लामिक पैगम्बर मोहम्मद के सामने कुरान की पहली झलक पेश की गई थी। लिहाजा रमजान को कुरान के जश्न का भी मौका माना जाता है।
रमजान एक अरेबिक शब्द है। ये अरेबिक के रमीदा और रमद शब्द से मिलकर बना है। इसका मतलब चिलचिलाती गर्मी और सूखापन होता है।
रमजान के दौरान मुस्लिम समुदाय के लोग पूरे एक महीने व्रत(रोजा) रखते हैं। इस्लाम में रोजा को फर्ध(ईश्वर के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर करना) माना गया है। इस दौरान कुछ लोगों जैसे बीमार होना, यात्रा करने,गर्भावस्था में होने,मासिक धर्म से पीड़ित होने एवं बुजुर्ग होने पर इन्हें रोजा न रखने की छूट होती है।
रोजे के दौरान रोजेदार पूरे दिन बिना कुछ खाए पिए रहते हैं। हर दिन सुबह सूरज उगने से पहले थोड़ा खाना खाया जाता है। इसे सुहूर (सेहरी)कहते हैं, जबकि शाम ढलने पर रोजेदार जो खाना खाते हैं उसे इफ्तार कहते हैं।
रमजान के दौरान खास दुआएं पढ़ी जाती हैं। हर दुआ का समय अलग अलग होता है। दिन की सबसे पहली नमाज को फज्र कहते हैं। जबकि रात की खास नमाज को तारावीह कहते हैं तराविह की हर सजदा पर 20000 सवाब मिलता है।
रमजान के दौरान रोजेदारों को बुरी सौहबतों से दूर रहना चाहिए, उन्हें न तो झूठ बोलना चाहिए, न पीठ पीछे किसी की बुराई करनी चाहिए, और ना ही लड़ाई झगड़ा करना चाहिए। इस्लामिक पैगंबरों के मुताबिक ऐसा करने से अल्लाह की रहमत मिलती हे
रमजान के दौरान पूरे महीने कुरान पढ़ना चाहिए। पैगंबरों के मुताबिक कुरान को इस्लाम के पांच स्तम्भों में से एक माना गया है। रोजे के वक्त कुरान पढ़ने से खुदा बंदों के गुनाह माफ करते हैं और उनके लिए जन्नत का दरवाजा खोलते हैं।
रमजान के वक्त रोजेदारों को दरियादिली दिखानी चाहिए, उन्हें दान(जकात) देना चाहिए। इससे उन्हें सबाब(पुण्य) मिलेगा। कई लोग इस दौरान मस्जिदों में मुफ्त में लोगों को खाना खिलाते हैं। जबकि कई लोग जरूरतमंदों को जरूरी सामान भी बांटते हैं।
आमतौर पर शिया और सुन्नी दोनों ही रमजान एक जैसे ही मनाते हैं, लेकिन दोनों के तरीकों में थोड़ा फर्क होता है। मसलन सुन्नी समुदाय के लोग अपना रोजा सूरज छिपने पर खोलते हैं। वहीं शिया पूरी तरह से अंधेरा होने के बाद रोजा खोलते हैं।
माना जाता है कि रमजान के गर्मियों में पड़ने पर ये काफी खास होता है। आफताब(सूरज) की गर्मी में रोजेदारों के पाप जल जाते हैं। मन पवित्र हो जाता है और दिल से बुरे विचार खत्म हो जाते हैं।
रमजान महीना ईद-अल-फित्र से खत्म होता है। इसे शवाल(चंद्र मास) का पहला दिन भी कहते हैं। इस दिन सभी रोजेदार नए कपड़े पहनकर मस्जिदों और ईदगाह में जाते हैं। वहां वे रमजान का आखिरी नमाज पढ़कर खुदा का शुक्रिया अदा करते हैं, साथ ही एक दूसरे को गले मिलकर बधाई देते हैं।

हाफीज मोहम्मद मुमताज रहमानी
इमामी जामा मस्जिद रानीबाग अध्यक्ष तनजीम अ इम्मा ए मसाजीद सहरसा

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