1अगस्त 2005 को कांवरिया एवं 31 अगस्त 1997 को डाक बम को हुई थी शुरुआत
🖋 रिपोर्ट: महेंद्र प्रसाद, सिमरी बख्तियारपुर
कोशी बिहार टुडे, सहरसा, 1 अगस्त 2025
बाबा मटेश्वर धाम मंदिर आज भले ही राज्य का प्रसिद्ध तीर्थस्थल बन चुका हो, लेकिन इसकी यात्रा गुमनामी, संघर्ष और अपार श्रद्धा से होकर गुजरी है। आज से ठीक 20 साल पहले, 1 अगस्त 2005 को कांठो गांव के मुन्ना भगत और शिवेंद्र पोद्दार ने महज 15 श्रद्धालुओं के साथ सावन की दूसरी सोमवारी पर पहली बार यहां गंगाजल से जलाभिषेक कर श्रावणी मेले की नींव रखी थी।
शुरुआत एक प्रेरणा से...
इस मंदिर की कथा वर्ष 1997 से शुरू होती है, जब भाद्र मास के द्वितीय रविवार, मुन्ना भगत व उनके साथियों ने "डाक बम" की परंपरा शुरू की। उस वक्त बाबा का मंदिर एक जर्जर, संकीर्ण और उपेक्षित स्थल था, जिसे स्थानीय लोग बुढ़वा मठ के नाम से जानते थे। रास्ता तक नहीं था, न पानी की व्यवस्था, न छांव।
मुन्ना भगत के अनुसार, "1997 से 2005 तक लाख प्रयासों के बाद भी भक्तों की संख्या दो अंकों में ही रही। हताशा थी, लेकिन बाबा की कृपा अपरंपार है। एक दिव्य अनुभूति के बाद हमें यह प्रेरणा मिली कि जब तक यहां कांवर यात्रा शुरू नहीं होगी, तब तक यह स्थान प्रसिद्ध नहीं हो सकता।"
1 अगस्त 2005: कांवर यात्रा की नींव
सावन की दूसरी सोमवारी, 1 अगस्त 2005 को 10–15 श्रद्धालुओं के साथ कांवर यात्रा प्रारंभ की गई। रास्ता खराब, सुविधाएं शून्य, लेकिन बाबा पर विश्वास अटूट। यह वह दिन था जब बाबा मटेश्वर धाम के पुनर्जागरण की नींव पड़ी।
श्रावणी मेला: संघर्ष से सफलता तक
प्रारंभ में कोई दुकानदार यहां मेला लगाने नहीं आया। मुन्ना भगत व टीम ने स्वयं दुकानदारों को क्षतिपूर्ति देकर बुलाया। गांव-गांव जाकर प्रचार किया, पंपलेट बंटवाया, लोगों को जोड़ा और बाबा की महिमा का प्रचार किया।
वर्ष 2006 में कांवरियों की संख्या बढ़ी, लगभग 200 कांवर तैयार कर श्रद्धालुओं को गंगाजल यात्रा पर भेजा गया। यह सिलसिला हर साल बढ़ता गया।
पत्रकारिता और जनचेतना का सहयोग
2007 में दैनिक 'हिंदुस्तान' में प्रकाशित खबर "बाबा मटेश्वर धाम मंदिर प्रशासनिक अपेक्षा का शिकार" ने प्रशासन का ध्यान आकर्षित किया। 2008 में विधायक निधि से मंदिर तक सड़क बनी और विकास का रास्ता खुला।
धार्मिक के साथ सामाजिक क्रांति भी
मुन्ना भगत और टीम ने मंदिर को सामाजिक केंद्र बनाने की भी पहल की। सैकड़ों गरीब कन्याओं की निशुल्क शादियां, मुंडन, संस्कार, नि:शुल्क भंडारे की व्यवस्था और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन प्रारंभ हुआ। मंदिर से हजारों लोगों की रोज़ी-रोटी जुड़ी।
समिति बनी, त्याग भी किया
मुन्ना भगत को केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने मुंगेर के छर्रा पट्टी में उनको सम्मानित किया था।
2008 में 'बाबा मटेश्वर धाम मंदिर विकास समिति' का गठन हुआ। सर्वसम्मति से मुन्ना भगत अध्यक्ष बने, लेकिन जब 2010 में मंदिर का बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद में पंजीकरण (नं. 4067) हुआ, तब मुन्ना भगत व टीम ने खुद को समिति से दूर कर निस्वार्थ सेवा में जुटे रहे।
216 फीट कांवर यात्रा और रथयात्रा: मील का पत्थर
आज यहां की 216 फीट कांवर पदयात्रा और रथयात्रा पूरे इलाके में प्रसिद्ध है। श्रावणी मेला में लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं, हर साल यहां सैकड़ों शादियां होती हैं। मंदिर को अब "मिनी बाबा धाम" के नाम से जाना जाता है।
बाबा मटेश्वर धाम की यह यात्रा सिर्फ एक मंदिर के विकास की नहीं, बल्कि आस्था, सेवा और संघर्ष की मिसाल है। जिन लोगों ने बिना किसी सरकारी पद या मान्यता के यह काम शुरू किया, आज भी वही निस्वार्थ भाव से बाबा की सेवा में लगे हैं — मूक लेकिन मजबूत नायक।