मंगलवार, 5 जून 2018


हिंदुस्तान  का पहला एवं विश्व का दूसरा सबसे बड़ा रेल दुर्घटना में शामिल धमराघाट बागमती हादसा
महेंद्र प्रसाद, सहरसा

तारीख : छह जून 1981, स्थान : सहरसा-मानसी रेलखंड के धमराघाट स्टेशन से आगे पूल नंबर 51 पर मानसी से सहरसा जा रही 416 डाउन पेसेंजर ट्रैन और बाहर तेज बारिश। ट्रेन के भीतर यात्री अपने में मस्त, सभी को घर पहुंचने की जल्दी। अचानक ड्राइवर ने ब्रेक लगाई और ट्रेन की नौ में से सात बोगियां फिसलकर पुल तोड़ते हुए लबालब नदी में विलीन हो गईं। आंकड़ों के हिसाब से दुर्घटना में करीब 800 लोगों की मौत हुई। हालांकि, बाद में मौत की संख्या कई गुना अधिक बताई गई।
भारत की पहली एवं विश्व की दूसरी बड़ा ट्रैन दुर्घटना---
यह भारत की अब तक की सबसे बड़ी और विश्व की दूसरी सबसे बड़ी ट्रेन दुर्घटना थी। विश्व की सबसे बड़ी ट्रेन दुर्घटना श्रीलंका में 2004 में हुई थी। तब 'सुनामी' की तेज लहरों में 'ओसियन क्वीन एक्सप्रेस' विलीन हो गई थी। उसमें 1,700 से अधिक लोगों की मौत हुई थी।
6 जून 1981 शनिवार की  दुर्घटना ने देश की सबसे बड़ी ट्रेन दुर्घटना थी । जो बच गए, वे आज भी उस मंजर को याद कर सिहर पड़ते हैं।

दरअसल, 1981 ट्रेन दुर्घटनाओं का साल था। इसी बीच भीड़ भरी 416 डाउन ट्रेन 6 जून को नदी में समा गई।


मानवता पर लगा ये दाग---

बोगियों के नदी में गिरने के बाद  चीख-पुकार मच गयी। कुछ चोट लगने या डूब जाने से जल्द मर गए, कुछ जो तैरना जानते थे, उन्होंने किसी तरह गेट और खिड़की से अपने और अपने प्रियजनों को निकाला। पर इसके बाद जो हादसा हुआ, वह मानवता के दामन पर बदनुमा दाग बन गया। हालांकि स्थानीय नागरिक लुटपाट की घटना को नही मानते है। लोगो का कहना है कि उस समय स्थानीय लोगो ने मदद ही किया था।
घटना स्थल की ओर तैरकर बाहर आने वालों से कुछ स्थानीय लोगों ने लूटपाट शुरू कर दी। यहां तक कि प्रतिरोध करने वालों को कुछ लोगों ने फिर से डुबोना शुरू कर दिया। कुछ यात्रियों का तो यहां तक आरोप था कि जान बचाकर किनारे तक पहुंची महिलाओं की आबरू से भी खेला गया।


मंजर  को याद कर सिहर उठता दिल---
बाद में जब पुलिस ने बंगलिया, हरदिया और बल्कुंडा गांवों में छापेमारी की तो कई घरों से टोकरियों में सूटकेस, गहने व लूट के अन्य सामान मिले थे। इससे यात्रियों के आरोपों की पुष्टि हुई। सेवानृवित कर्मचारी जो इस ट्रेन में जिंदा बच गया आज भी उस घटना को याद कर सिहर जाते है।

तीन हजार तक हुई मौतें

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक करीब 500 लोग ही ट्रेन में थे। लेकिन, बाद में रेलवे के दो अधिकारियों ने  बातचीत में मृतकों की संख्या 1000 से 3000 के बीच बताई थी। गौरतलब बात यह है कि यह पैसेंजर ट्रेन थी, जिसमें कितने लोग थे, निश्चित अंदाजा लगा पाना मुश्किल था।

दुर्घटना के बाद स्थानीय व रेल प्रशासन ने राहत व बचाव अभियान चलाया। गोताखोर लगाए गए। भारतीय नौसेना ने तो पानी के अंदर विस्फोटकों का इस्तेमाल कर 500 लाशें निकालने की योजना बनाई , हालांकि ऐसा नहीं हो सका।घटना के बाद तत्कालीन रेलमंत्री केदारनाथ पांडे ने घटनास्थल का दौरा किया। हालांकि, घटना के बाद रेलवे द्वारा बड़े पैमाने पर राहत व बचाव कार्य चलाया गया परंतु रेलवे द्वारा घटना में दर्शायी गयी मृतकों की संख्या आज भी कन्फ्यूज करती है क्योंकि सरकारी आंकड़े जहां मौत की संख्या सैकड़ो में बताते रहे तो वही अनाधिकृत आंकड़ा हजारों का है। 
             (पूल नंबर -51, इसी पूल से ट्रेन इसी नदी में समा गयी थी)



दुर्घटना की वजह दो कारण---
आखिर इतनी बड़ी दुर्घटना कैसे हुआ आज 39 साल के बाद भी पता नही चल पाया की दुर्घटना कैसे हुई थी? हालांकि, दो कारण बताए गए हैं। पहला यह कि ट्रैक पर अचानक एक भैंस आ गई, जिसे बचाने के क्रम में ड्राइवर ने ब्रेक मारी। ट्रैक पर फिसलन के कारण ट्रेन फिसलकर नदी में जा गिरी। दूसरा कारण यह बताया जाता है कि उस वक्त तूफानी हवाओं के साथ बारिश हो रही थी। इस कारण यात्रियों ने खिड़कियां बंद कर लीं। जिस कारण ट्रेन से तूफानी हवाओं के क्रॉस करने के सारे रास्ते बंद हो गए और भारी दबाव के चलते ट्रेन पलट गई।
क्या कहते है जश्मदीद----
धनछर गांव निवासी घटना के जश्मदीद बिंदेश्वरी प्रसाद सिंह घटना को याद कर सिहर जाता है। अपनी आंखों के सामने दिलदहलाने वाली घटना घट गया। बिंदेश्वरी सिंह ने बताया कि वे इंजन के बाद वाले बोगो में था, जिन कारण उनकी जांच बच गयी। जिस बोगी में श्री सिंह था उस बोगी भी आधा डूबा था
            ( फोटो-बिन्देशरी सिंह, घटना के चश्मदीद गवाह)
। उस घटना में धनछर गांव के लगभग एक दर्जन लोगों की मौत हो गयी था। जिनमे सिकेन्द्र सिंह, बालेश्वर सिंह, पारस सिंह, राजकुंमार सिंह, छोटन सिंह, जालो सिंह, मीना देवी पति फोचन सिंह, बासुदेव सिंह के पुत्र एवं महादेव मंथ के नेति सिंह का पोता की मौत हो गया था। मृतक राजकुमार सिंह का पिताजी रामजी सिंह आज भी बेटे की मौत पर सिसक जाते है। आज भी वे फेनगो हाल्ट के समीप एक पान दुकान चलकर परिवार चलाते है। हालांकि रेल के द्वारा मृतक को 50 हजार एवं घायल को 5 हजार मुआबजा तो दिया, लेकिन मुआबजा देने की डर से रेलवे ने बागमती से लैश को नही निकलवाया।

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