शनिवार, 11 मई 2019

कोसी का रौद्र रूप देख अपना ठिकाना बदल लेते है तटबन्ध के लोग


कोशी नदी में उतरा लाल पानी, बाढ़ की आहट
कोशी बिहार टुडे, सहरसा

कोसी नदी में लाल पानी उतर गया है। ये लाल पानी बाढ़ आने का पूर्व सूचना है। कोसी नदी में लाल पानी के उतरने के बाद अब नदी में पानी बढ़ना प्रारम्भ हो गया है एव नदी को चौड़ाई अब फैलने लगा है। कल तक जहा गाड़ी फर्राटे लगाकर दौर रही थी, अब वहां पानी आ गया है।
तुरंत धारा बदल लेती है कोसी---
धारा बदलने में माहिर कोसी नदी हर वर्ष कही ना कही अपना रास्ता अलग करती है। जहाँ थोड़ी सी भी धारा बदलती है उस इलाके में कहर बरपाती निकलती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण वर्ष 2008 में आई कुशहा त्रासदी है। पूर्वी व पश्चिमी कोसी तटबंध के भीतर बसने वाले लोगों की दिनचर्या कोसी की धारा से बदलती रहती है। कोसी वासी हर साल कोसी का तांडव झेलते हैं। कभी कोसी का प्रचंड रूप देखते हैं, तो कभी इसकी निर्मल धार। हालांकि इसे सभी शोक के रूप में ही याद करते हैं। हर वर्ष कोसी नदी के विनाश लीला से दर्जनों आशियाने को कोसी लील लेती है। जब भी कोसी विनाश करती है तब ही सरकार जागती है। युद्ध स्तर पर बाढ़ राहत का काम होता है। लेकिन स्थायी समाधान नहीं हो पाता है। स्थिति यह है कि हर साल कोसी की बदलती धारा के साथ लोगों की दिनचर्या बदलती रहती है।
कोसी के बढ़ते जलस्तर के कारण अपनी जगह तो बदलते ही हैं और अपने जीने का ढंग भी बदल लेते हैं। तटबंध के अंदर पानी नहीं रहने पर खेती व मजदूरी कर जीवनयापन करते हैं व पानी आने पर विस्थापित हो जाते हैं। फिर मजदूरी करने को मजबूर हो जाते हैं। कुछ ग्रामीण तो राज्य से बाहर पलायन कर जाते हैं। कभी तटबंध के अंदर जिंदगी कटती है तो कभी कोसी की तेज धार से बचने के लिए तटबंध के बाहर की जिंदगी गुजारती है।
क्या है कारण

हर साल कोसी अपनी तेज धारा में लाखों टन गाद लेकर आती है। इसी गाद के एकत्रित होने से टीला का निर्माण होता है। जिसके कारण इसकी दिशा लगातार बदलती रहती है। इसी कारण ग्रामीण भी इसकी धारा को निश्चित नहीं मानते। कटनियां भी इसकी धारा बदलने का एक कारण है। यह किनारे पर मिट्टी काफी तेजी से काटती है। जिस कारण भी ग्रामीण भयभीत रहते हैं। बरसात में इसकी धारा काफी तेज बहती है। जिस कारण कोसी वासी ने अपनी मजबूरी को अपनी नियति मान लेते है।
दर्जनों गांव नदी में समाया, लेकिन अब तक एक भी गांव सही से नही बसा----
हर साल बाढ़ आती है। कटाव होता है। अच्छे अच्छे टोला नदी में समा जाता है। लेकिन एक टोले को पूनः दुबारा निर्माण होने में दशकों लग जाता है, लेकिन टोला नही बन पाता है। यही कारण है कि कोसी तटबन्ध के अंदर जिनका भी घर कोसी नदी में समाया वहा के लोग छिटपुट अलग अलग जगह रह रहे है। सलखुआ प्रखंड के चानन पंचयात के चानन, डेंगराही, उटेशरा पंचयात में टेंगराहा, जागीर, कामरादिह, सिमरी बख्तियारपुर प्रखंड के बेलवाड़ा, कठडुमर आदि पंचयात में कई टोला कोसी नदी में समा चुका है।हालांकि सरकार ने भी इनलोगो को पुर्नवासित करने के लिये जमीन भी दिया। कई लोग घर बनाये एवं कई तटबन्ध के स्पर पर ही किसी तरह झुग्गी बनाकर रह रहे है। 
नही मिल रहा है शुद्ध पेयजल------
राजनपुर से कोपरिया तक लाखो लोग तटबन्ध के किनारे शरण लिए है। लेकिन इनलोगो को पीने के लिये साफ पानी उपलब्ध नही है। सरकार के सात निश्चय हर घर नल जल यहाँ पूरी तरह से फ्लॉप नजर आ रहा है। हालांकि तटबन्ध पर बिजली तो है, लेकिन पीने का पानी सहित कई मूलभूत सुविधाएं नही है।

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