14वीं शताब्दी के अदभुत शिवलिंग बाबा मटेश्वर धाम में महाशिवरात्रि पर लगा भक्तो का तांता, वैद्यनाथ धाम का रूप ले रहा है बाबा मटेश्वर धाम
कोशी बिहार टुडे, सहरसा
मिनी बाबाधाम के रूप में प्रसिद्ध मटेश्वर धाम की महिमा अपार है। महाशिवरात्रि पर यहां हजारों लोगों के जुटने की संभावना है। महाशिवरात्रि के मौके पर दो दिवसीय मटेश्वर महोत्सव का आयोजन जोर-शोर से किया जा रहा है। इस मौके पर 21 एवं 22 फरवरी को देश के अच्छे कलाकार के द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जायेगा। मंदिर कमिटी के अध्यक्ष सह पूर्व विधायक डॉ अरुण कुमार मटेश्वर महोत्सव को सफल बनाने के लिये कमिटी सहित आसपास के लोगो के सहयोग से कार्य कर रहे है।
जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर एवं सिमरी बख्तियारपुर रेलवे स्टेशन से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मटेश्वरधाम में उमड़ रही भीड़ के कारण यह आस्था का प्रमुख केन्द्र बनता जा रहा है।
स्वयं अंकुरित है शिवलिंग---
मटेश्वरधाम का अनोखा शिवलिंग स्वयं अंकुरित है। यह शिवलिंग 14 वीं शताब्दी की बतायी जाती है। समतल जमीन से 30-40 फीट उंचे टीले पर स्थापित काला पत्थर के शिवलिंग की मोटाई करीब 4 फीट तथा ऊंचाई ढ़ाई फीट है। शिवलिंग के चारों तरफ एक इंच की चौड़ाई में खाली स्थान है। गर्मी के मौसम में खाली स्थान पानी से लबालब भरा रहता है। जबकि बरसात में इसका जलस्तर काफी नीचे चला जाता है। वर्ष 2003 में शकराचार्य बासुदेवानंद सरस्वती ने इस शिवलिंग का दर्शन कर कहा था कि ऐसा अद्भूत शिवलिंग मैंने पहली बार देखा है। यह दुनिया का अनोखा शिवलिंग है। बताया जाता है कि यह मंदिर पत्थर से निर्मित था। लेकिन औरंगजेब शासन काल में इसे तोड़ दिया गया था। अभी भी मंदिर के अवशेष प्रांगण में पड़ा हुआ है।
मंदिर का नये सिरे से हुआ निर्माण---
करीब सौ साल पहले बघवा गाव के सत्यदेव राय को भगवान शिव स्वप्न में आये थे। उसके बाद उन्होंने मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर परिसर के चारों तरफ जब समय-समय पर खुदाई की गयी तो पुरानी मूर्तियां, पत्थर एवं अन्य निर्मित सामान मिले थे। वर्तमान में मटेश्वर धाम के चारों तरफ करीब 22 एकड़ जमीन है। मंदिर के ठीक सामने सौ मीटर की दूरी पर अवस्थित पोखर है। जिसकी खुदाई करने के क्रम में 9 कुएं मिले थे। कहा जाता है कि एक गुंगा साधू मुशहरू दास मंदिर के दक्षिण दिशा में खुदाई करने के लिए हमेशा इशारे से प्रेरित किया करते थे। जब ग्रामीणों द्वारा खुदाई की गयी तो एक-से-एक पत्थर एवं बहुमूल्य मूर्ति मिली। वर्ष 2007 में पुरातत्व विभाग के निदेशक डा. फनीकांत मिश्र द्वारा मटेश्वरधाम का भ्रमण करने के क्रम में मंदिर परिसर की खुदाई से निकले सामान देख आश्चर्य व्यक्त किया था। उन्होंने भगवान शनि की मूर्ति को भारत का दूसरा मूर्ति बता कर इस मटेश्वरधाम को सेटेलाईट के माध्यम से भारत के मानचित्र पर लाने का आश्वासन दिया था।
शिव पुराण में है चर्चा---
शिव पुराण में बाबा मटेश्वर का नाम मृत्येश्वर के नाम से वर्णित है जो सृष्टि में एक है। ग्रामीण लोग पहले बुढ़वामठ कहा करते थे। काठो निवासी मुन्ना भगत को किशोरावस्था से ही बाबा मटेश्वर के प्रति आस्था थी। रोजाना जल चढ़ाकर पूजा-अर्चना किया करते थे। वर्ष 1997 में 19 वर्ष की उम्र में कुछ अलग करने की सूझी। अपने मित्रों शिवेन्द्र पोद्दार, सिकेन्द्र साह, संजय चौरसिया, मंगल साह, सत्यनारायण साह, विनोद सिंह, अशोक यादव, अशोक साह, पिताम्बर के, हरेराम सिंह, विरबल साह को प्रेरित कर अपनी व्यवस्था से पहली बार कावंरिया बम की शुरूआत की। मटेश्वर धाम से 80 किलोमीटर दूर मुंगेर घाट-छर्रापट्टी गंगा नदी से जल भरकर खगड़िया, मानसी, बलहाबाजार, बदला घाट, कात्यायनी स्थान, धमारा घाट, कोपरिया स्टेशन तक रेल पटरी के किनारे पत्थरनुमा पगडंडी पर कष्टदायक यात्रा कर सिमरी बख्तियारपुर के रास्ते मटेश्वरधाम पहुंच कर अद्भूत शिवलिंग पर जलाभिषेक एवं पूजा-अर्चना कर इतिहास रच दिया। इसके बाद वर्ष 2005 में यही युवक मंडली में डाक बम की भी शुरूआत की। श्रावण मास में श्रद्धालु की उमड़ी भीड़ से मटेश्वर धाम को मिनी बाबा धाम के रूप में जाना जाने लगा है। वर्तमान में बाबा मटेश्वर धाम के अध्यक्ष पूर्व विधयाक डॉ अरुण कुमार, अपने सदस्य के साथ मंदिर का चौहुमुखी विकास करने में जुटा है। मंदिर की अध्यक्ष डॉ अरुण कुमार, सचिव जगधर यादव, डाक एवं बोलबम कंवरिया संघ के अध्यक्ष मुन्ना भगत, शिवेंद्र पोद्दार, पिंकू यादव सहित अन्य ने बताया कि महाशिवरात्रि को लेकर विशेष तैयारी की गयी है।
Jai baba mateshwar
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